शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

पागो

पागो हमारे घर आई थी,हमारे मामा के घर शादी थी और वो मौसी के साथ आयी थी,जहां रहती,वहां हलचल सी बनी रहती थी,उसकी उटपटांग बातें सबको हसने पर मजबूर कर देती थी.
उसे लोग पगली कह कर बुलाते हैं,लोग पूरी तरह गलत भी नही हैं,मैने उसे पहली बार तब देखा था, जब मैं छठी क्लास में थी और मौसी के घर गयी थी.गहरे काले रंग का शरीर लेकिन मुस्कुराता चेहरा,शक्ल से ही इमानदारी झलकती थी,बाल तो इतने काले कि लगता था कभी सफेद होंगे ही नही,
प्यार से मौसी के घर पर सभी उसे पागो कहते थे,वो उनके घर काम करने आती थी,बरतन धोना,कपडे धोना और घर के सारे काम करके फिर सबके पैर दबाना,यही उसके काम थे.लेकिन ये इतना आसान भी नही था अगर उसकी मर्जी होती थी तभी वो कुछ करती थी.
एक दिन वो मामा के घर से हमारे घर आई,साथ में एक आम लेकर आई थी,सबने पूछा कि आम किसलिए ?खाली हाथ कैसे आबो?वो बोली. जंगलों और पहाडों में रहने वाली उस संथाल औरत ने जो जवाब दिया वह आज सभ्य परम्परावादी भी भूलते जा रहे हैं,
दो साल मे वो अपने बाल मुडवा लेती थी,कहती थी ऐसे बिमार नही पडेगी,अगर पीठ मे दर्द होता तो गरम लोहे से दाग लेती,कहती दर्द खतम हो गया.जाने कौन से भगवान थे उसके? उसे घर मे जो चीज पसंद आ जाती उसे लिये बिना वो कोई काम नही करती थी.
एक बार वो बिमार पडी तो मौसी ने उसके पैर दबा दिये,तो बदले मे उसने पांच रू दिये और कहा ब्लाउज बाद मे देगी क्योंकि मौसी भी उसे वही देती थी.आजकल वो बिमार रहने लगी है,लेकिन मौसी के घर आना नही छोडती है,वजह शायद ये होगी कि
हर प्राणी प्यार और केवल प्यार का भूखा होता है और जहां उसे प्यार मिलता है वो वहां खिंचा चला जाता है.

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

शर्म करो यमदूतों !!

आई बी एन 7 पर ओपरेशन यमदूत ने पांच सितारा अस्पतालों को बेनकाब किया,कोबरा पोस्ट द्वारा दिया गया नाम ओपरेशन यमदूत अपने नाम को चरितार्थ करता नजर आता है, जब डॉक्टर किसी का सफल इलाज करते हैं तो हम उन्हे भगवान कहते हैं लेकिन वही डॉक्टर अगर लालच मे अंधे होकर गरीबों का खून चूसने लगें,अपना फर्ज भूल किसी का इलाज करने से इंकार कर दें और बस पैसे का गुलाम बन कर रह जायें तो वह यमदूत ही कहलाएंगे. हाल में ही कई नामी गिरामी आधुनिक साधनों से लैस अस्पतालों में स्टींग ओपरेशन किये गये,इन ओपरेशनों में जो सच्चाई उभर कर सामने आई वो सचमुच परेशान कर देती है.
मैक्स,रोक्लेंड,बत्रा,जीएम मोदी,पुष्पावती सिंघानिया,फोर्टीस अस्पताल जैसे दिल्ली के चालीस पांचसितारा अस्पतालों को सरकार ने रियायती दर पर जमीन इस शर्त पर दी थी कि वो बीपीएल कार्ड धारकों और चार हजार रुपये से कम आय वाले मरीजों का मुफ्त इलाज करेंगे,साथ ही अस्पतालों के दस फीस्दी बेड गरीबों के लिये रहेंगे, लेकिन ये सारे प्राईवेट अस्पताल इन नियमों की धज्जियां उडा रहे हैं,
हर जगह बेचारे गरीबों को मिलती है धमकी,दुत्कार,दफा हो जाने की नसीहत,वे कहते हैं पैसे कहां से दोगे?नही दोगे तो सरकारी अस्पताल जाओ,
ये अस्पताल तो प्राइवेट हैं,लेकिन क्या सरकारी अस्पताल गरीबों को न्याय दे रहे है? क्या वे अपने फर्ज का निर्वाह कर रहे है,जरूरत है ओपरेशन यम्दूत आगे जारी रखने की,तभी वो कडवी सच्चाई (जिससे वहां इलाज करवाने वाले तो भलीभांति वाकिफ हैं लेकिन सरकार अंजान बनी बैठी है) सामने आयेगी,
यमदूत बने इन डॉक्टरों को मरीज और गम्भीर होती उसकी स्थिति से कोई सरोकार नही होता इन्हें बस पैसों की चिंता होती है,
वैसे गरीबों के जीवन का औचित्य ही क्या है?खासकर ऐसे जगहों पर जहां चमकते दमकते लोगों का आना जाना लगा रह्ता हो,जहां बडे लोग अपनी एक छींक पर भी रुपयों के ढेर लुटाने को तैयार बैठे हों,ऐसी शान बान वाले अमीरों की तीमारदारी छोड डॉक्टर भला क्यों कंगालों की टूटती सांसों की डोर को थामेंगे,
टीवी पर कुछ दिनों पहले ही दिखाया गया था कि एक्सीडेंट में घायल एक आदमी कैसे रात भर इलाज के लिये तडपता रहा लेकिन उसे फर्स्ट एड तक नही मिल पाया,और वो बदनसीब मर गया.बडे बडे अस्पतालों का कोई छोटा सा डॉक्टर या नर्स भी उसे अपना कीमती समय ना दे पाये. दिल्ली जैसे शहर में इंसान की जिंदगी इतनी सस्ती और इलाज इतना मंहगा? ये बडा हास्यास्पद है लेकिन दुर्भाग्यवश यही सच है.
जैसा कि हर बडे खुलासे पर सरकार व सम्बंधित मंत्रियों का कार्य होता हैकिउच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिये जाते है वैसा हो गया है ,अब आगे आगे देखिये होता है क्या?स्टींग ओपरेशन के खुपिया कैमरे के सामने जो बेनक़ाब हो चुके है,वो अपनी बेशर्मी को किस नये पर्दे से ढकेंगे

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

हे! भगवन क्या करूँ इन रोड्छाप लुटेरों का??

हाल ही में मै डाकघर से अपना टेलीफ़ोन का बिल जमा कर वापस घर आ रही थी। घर से ज्यादा दूरी पे नहीं थी मै,रास्ता थोड़ा सुनसान सा था पर ज्यादा नहीं। एक लड़का अचानक मेरे साथ साथ चलने लगा मैंने ध्यान न देते हुए अपना मोबाइल निकाल किसी को फ़ोन करने की कोशिश की,बस उसे तो शायद इसी पल का इंतज़ार था,उसने झट से मेरे हाथ से मोबाइल छीना और भागने को हुआ पर एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया के अनुरूप मेरे हाथ मे उसकी टीशर्ट (जो पूरी बाजू की थी)आ गयी। मुझे अभी भी विश्वास था की मै अपना प्यारा और मंहगा मोबाइल वापस छीन लूँगी लेकिन अचानक पीछे से उसका एक साथी जो बाईक पर सवार था वो आ गया उसने मेरे हाथ से छुड़ाकर अपने साथी को साथ बिठाया और मेरी आँखों के सामने उड़न छू हो गया ,इस अप्रत्याशित घटना की कल्पना मैंने कभी नहीं की थी,न उनमे से कोई कर सकता है जो ऐसे हादसों के शिकार होते हैं जाने इन चोरों की कैसी मानसिकता होती है कि मेहनत कर लोग जो पैसे कमाते हैं,चीजें खरीदते हैं , ये एक पल में उसे छीन कर या चुरा कर अपने नाम कर लेते हैं । अब चोर लुटेरे इतने बुद्धिजीवी तो नहीं होंगे कि मेरा ब्लॉग पढ़ सकें ,पर काश हम देख पाते कि चोरियों और इन छिछोरी हरकतों से क्या वे अपनी किस्मत बदल पाए ? दिल्ली पुलिस का हाल न ही लिखूं तो बेहतर है,क्योंकि सभी उन्हें भलीभांति जानते हैं।

सोमवार, 9 नवंबर 2009

मैं आज की युवा जनता हूँ!!!

मैं आज की युवा जनता हूँ!
गौर से देखो मुझे क्या किसी मॉडल से कम लगता हूँ।
चीन और पाकिस्तान हमले की साजिश रच रहे है
अरे!देश की सेना क्या कर रही है?
मैं बेखबर तो रोज डिस्को और पब जाता हूँ
जगह जगह आतंकी दहशत फैला रहे हैं
मैंने एक नज़र न्यूज़ चॅनल पर डाला है
वैसे मैं क्रिकेट और राखी का स्वयंवर देखता हूँ
सना है मंहगाई बेतहाशा बढ़ रही है,पापा है न?
मैं तो रोज मक्दोनाल्ड में ही खाता हूँ।
माँ, पापा ने सालों से नए कपड़े नही ख़रीदे ,पर मैं तो
लैपटॉप और आधुनिकतम मोबाइल खरीदूंगा
आखिर हाई क्लास दोस्तों के साथ रहता हूँ
नेता आजकल गुंडागर्दी करते है,वे बड़े भ्रष्ट और कामचोर हो गए हैं
मुझे दोष मत देना,
मैं तो चुनाव में वोट भी नही डालता हूँ।
देश की घिसी पिट्टी गरीबी,औरतों की असुरक्षा
अशिक्षा ,आतंकवाद,भ्रस्ताचार जैसी बातों के लिए समय नही
मैं आज का डॉक्टर,इंजिनीअर हूँ,
और एम् बी ऐ ,एम् सी ऐ करता हूँ!
हाँ मैं ही आज की युवा जनता हूँ!!!

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

प्रभाष जोशी जी को आखिरी नमन!!!

कल का दिन पत्रकारिता जगत में एक शोक की लहर सी छोड़ गया। प्रभाष जोशी जैसे महान पत्रकार हमारे बीच नही रहे। तीन महीने पहले ही हमारे दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के नए सत्रारंभ की गोष्ठी में मुख्य अतिथि बनकर वे आए थे। मैंने उनके ज्यादा लेख नही पढ़े,लेकिन उनके उत्साहपूर्ण भाषण को सुना। वहां और भी बड़े पत्रकार थे लेकिन उन्होंने तो हमें जैसे एक ही दिन में पत्रकारिता के सारे गुर सिखा दिए। कुछ मिनटों के भाषण में उन्होंने राजनीति,क्रिकेट,सचिन,टीवी के रियलिटी शो ,राखी सावंत,बाढ़ ,नेहरू जी ,कमला नेहरू और अन्य कई छोटे बड़े विषयों को इतनी खूबी के साथ समाहित किया कि हमें लगा ,बस उन्हें सुनते रहें। पत्रकारिता में पॉवर और पैसे के बढ़ते प्रभाव पर उन्होंने बड़ी चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि आज जरुरत है सच्चे , ईमानदार और पत्रकारिता को समर्पित पत्रकारों की। अंत में उन्होंने कहा था कि जीवन का तो दूसरा नाम ही संघर्ष है,आप में से कई ऐसे होंगे जो शार्टकट लेकर पैसे और पॉवर कि तरफ़ खिंचे चले जायेंगे लेकिन कोई तो होगा जो इनको "ना"कहेगा , बस पत्रकारिता का दायित्व उसी "ना कहने वाले "पर टिका रहेगा।आज के दिन उन्हें श्रधांजलि देते हुए हम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र बस इतना ही कहेंगे कि "अस्त्न्गामी सूर्य ने पूछा ,कौन करेगा इतना श्रम?नन्हा दीप कहीं से बोला , यथासाध्य हरूँगा तम्."

सोमवार, 2 नवंबर 2009

हाय! ये सुरसामुख मंहगाई!

हम घर का राशन खरीदने बाजार निकले थे। किराने की दुकान पर पता चला कि सप्ताह भर पहले जो चावल बीस रूपये किलो था आज पच्चीस में मिल रहा था,दालें नब्बे रूपये किलो ,चीनी भी कुछ कम मंहगी न थी। सब्जियों के दाम तो और भी होश उड़ने वाले थे ,सौ रूपये में तीन किलो आलू ??दाम सुन सुन के दिल बैठा जा रहा था। अभी ही तो डीटीसी वालों ने भी किराया बढ़ा दिया ,दूध के दाम भी तो बढ़ते ही जा रहे हैं। घर मंहगे, खाना मंहगा,बिजली मँहगी,सफर करना मंहगा,पढ़ाई मँहगी,सब कुछ मंहगा???? ये कमरतोड़ मंहगाई हमें जाने किस दौर में पहुँचाने वाली है?डार्विन कि थेओरी के आधार पर "जो शक्तिशाली होगा वो ही जियेगा।"(जेब से शक्तिशाली)

ऐसा लगता है जैसे अब समाज में दो ही वर्ग रह पाएंगे। एक धनी और एक निर्धन। देश के उच्च पदों पर आसीन राजनेता इन सबके बारे में जाने क्या सोच रहे हैं?क्या कर रहे हैं?सोच भी रहे हैं या नही?आम आदमी बेचारा कम से कम कुछ सोच तो रहा है,ये अलग बात है कि वो सोचने के अलावा और कुछ कर भी नही सकता!!

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

बस थोडी सी आजादी की दरकार है

बुधवार के दिन टीवी चैनल स्टार प्लस पर बार बार एक संदेश प्रसारित हो रहा था की सीरियल बिदाई में महर्षि वाल्मीकि के बारे में जो शब्द कहे गए,वे किसी समुदाय विशेष को ठेस पहुचाने के इरादे से नही कहे गए,और सभी सम्बंधित व्यक्ति वाल्मीकि जी का सम्मान करते हैं,
पिछले दिनों एक ख़बर सुर्खियों में थी की करण जोहर ने अपनी आगामी फ़िल्म में बॉम्बे शब्द के इस्तेमाल के लिए एक व्यक्ति विशेष से माफ़ी मांगी, आखिर यह माफियों का सिलसिला कब ख़तम होगा?क्या आजाद होकर भी हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी अभी बांकी है?किस बात से डरकर ये माफियाँ मांगी जाती हैं?
क्या हम एक जनतांत्रिक देश में रहते हैं?